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| वैष्णों देवी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एक्सिलेंस |
श्री माता वैष्णो देवी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एक्सीलेंस, कटरा में इस बार एमबीबीएस एडमिशन लिस्ट में 90% कश्मीरी मुस्लिम छात्रों के चयन को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है, जबकि कॉलेज पूरी तरह माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड के डोनेशन से चलता है। विवाद के बीच बड़ा सवाल उठ रहा है कि क्या इस तरह के धार्मिक ट्रस्ट के मेडिकल कॉलेज में सिर्फ हिंदू छात्रों के लिए ही सीटें होनी चाहिए या फिर संविधान और NEET मेरिट के अनुसार सभी धर्मों के छात्रों को बराबर अवसर मिलना चाहिए।
क्या है मामला?
कटरा स्थित श्री माता वैष्णो देवी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एक्सीलेंस में इस साल एमबीबीएस की 50 सीटों पर एडमिशन हुआ, जिसमें से 42 सीटें कश्मीरी मुस्लिम छात्रों को मिलीं। जम्मू-कश्मीर के 13 मेडिकल कॉलेजों की तरह यहां भी काउंसलिंग NEET रैंक के आधार पर हुई, कुल 1,685 सीटों के लिए 5,865 स्थानीय छात्रों को शॉर्टलिस्ट किया गया और 85% सीटें यूटी डोमिसाइल के लिए रिजर्व थीं।
सूत्रों के अनुसार, काउंसलिंग की लिस्ट में 70% से अधिक छात्र मुस्लिम समुदाय से थे, इसलिए मेरिट के आधार पर जब वैष्णो देवी मेडिकल कॉलेज की सीटें भरी गईं तो 90 प्रतिशत सीटें मुस्लिम छात्रों को चली गईं। अधिकारियों का कहना है कि जम्मू क्षेत्र के कई मेडिकल कॉलेजों में भी इसी तरह कश्मीरी छात्रों की संख्या अधिक रहती है और यह पैटर्न नया नहीं है, बल्कि प्रतिस्पर्धा में आगे रहने वाले उम्मीदवारों की संख्या का परिणाम है।
विवाद क्यों बढ़ा?
हिंदू संगठनों और कुछ राजनीतिक दलों का आरोप है कि जिस मेडिकल कॉलेज को माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड के दान से फंड किया जाता है, वहां पर भक्तों की भावनाओं का सम्मान करते हुए हिंदू छात्रों को प्राथमिकता मिलनी चाहिए। उनका कहना है कि मंदिर ट्रस्ट के पैसे से चलने वाले संस्थान में इतनी अधिक संख्या में मुस्लिम छात्रों का चयन होना “असंतुलन” है और इसे दुरुस्त करने की जरूरत है।
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इस तर्क का विरोध करते हुए कहा कि एडमिशन NEET और प्रवेश परीक्षाओं के आधार पर होते हैं, धर्म के आधार पर नहीं, और अगर किसी संस्थान को किसी खास धर्म के लिए आरक्षित करना है तो उसे अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा दिलाना होगा। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि आज किसी समुदाय के बच्चों को सिर्फ उनके धर्म की वजह से स्वीकार नहीं किया जाता, तो भविष्य में सांप्रदायिकता के आरोप पर उस समुदाय पर उंगली उठाने का नैतिक अधिकार कमजोर हो जाएगा।
कॉलेज और NMC के बीच कोटा विवाद
श्री माता वैष्णो देवी मेडिकल कॉलेज प्रबंधन ने नेशनल मेडिकल काउंसिल (NMC) से मांग की थी कि कॉलेज की सभी 50 सीटें मेडिकल काउंसलिंग कमेटी (MCC) के जरिए ऑल इंडिया कोटे में भरी जाएं, ताकि पूरे देश से उम्मीदवार प्रतिस्पर्धा कर सकें। कॉलेज का तर्क था कि चूंकि संस्थान पूरी तरह श्राइन बोर्ड के डोनेशन से चलता है और केंद्रशासित प्रदेश प्रशासन से वित्तीय मदद नहीं लेता, इसलिए एडमिशन प्रोसेस में भी मंदिर और भक्तों का ऑल इंडिया कैरेक्टर दिखना चाहिए।
NMC ने यह प्रस्ताव खारिज कर दिया और कॉलेज को जम्मू-कश्मीर के अन्य मेडिकल कॉलेजों की तरह ही स्थानीय कोटा व्यवस्था का हिस्सा बनाए रखा। इसी वजह से यूनियन टेरिटरी आधारित डोमिसाइल और काउंसलिंग सिस्टम के तहत सूची में आगे रहे कश्मीरी मुस्लिम छात्रों को अधिक सीटें मिल गईं, जिसे लेकर अब राजनीतिक और सामाजिक विवाद खड़ा हो गया है।
अल्पसंख्यक संस्थान और संविधान क्या कहते हैं?
भारत के संविधान के अनुसार मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी समुदाय को अल्पसंख्यक माना गया है और ये समुदाय अपनी भाषा, संस्कृति और परंपरा की रक्षा के लिए अपने शैक्षणिक संस्थान स्थापित कर सकते हैं। ऐसे संस्थान अपने समुदाय के छात्रों के लिए एक निश्चित प्रतिशत सीटें आरक्षित रख सकते हैं और प्रशासन, स्टाफ भर्ती तथा पाठ्यक्रम के मामले में उन्हें अतिरिक्त स्वायत्तता मिलती है।
हालांकि किसी भी मान्यता प्राप्त अल्पसंख्यक संस्थान में अन्य धर्मों के छात्रों को प्रवेश देने से रोकने वाला कोई कानून नहीं है और कई संस्थानों में 90 प्रतिशत तक गैर-अल्पसंख्यक छात्रों को भी पढ़ने का मौका मिलता है। वैष्णो देवी मेडिकल कॉलेज को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा नहीं मिला है, इसलिए यहां एडमिशन प्रक्रिया सामान्य नियमों और NEET मेरिट के आधार पर ही चल रही है, जिसे लेकर अब नए सिरे से बहस छिड़ गई है।

