सत्यनारायण मंदिर की मुख्य विशेषताएं:
600 साल से भी अधिक पुराना इतिहास:
मंदिर की स्थापना 1532 में बाबा काली कमली वाले द्वारा की गई थी, लेकिन इसकी पौराणिकता इससे भी पुरानी मानी जाती है।
चारधाम यात्रा की प्रथम चट्टी:
इसे बद्रीनाथ धाम की प्रथम चट्टी (विश्राम स्थल) माना गया है। पुराणों, विशेष रूप से स्कंद पुराण, में इसका उल्लेख है।
स्थानीय आस्था का केंद्र:
श्रद्धालु मानते हैं कि भगवान सत्यनारायण से अनुमति लेकर ही यात्रा प्रारंभ करनी चाहिए। इसीलिए यात्रा का पहला चरण यहां से शुरू होता है।
स्थान:
यह मंदिर सौंग नदी के तट पर, हरिद्वार-ऋषिकेश राजमार्ग पर स्थित है और हरिद्वार से मात्र 15 किलोमीटर की दूरी पर है।
मंदिर की मूर्तियाँ:
यहां लक्ष्मी-नारायण के विग्रह के साथ-साथ भगवान गरुड़ की प्रतिमा भी विराजमान है।
धार्मिक आयोजन और भंडारे:
मंदिर में नियमित रूप से सत्यनारायण व्रत कथा, भंडारे, और धार्मिक आयोजन होते रहते हैं, जिससे यह एक जीवंत धार्मिक स्थल बना हुआ है।
स्नान कुंड के अवशेष:
प्राचीन समय में श्रद्धालु यात्रा से पहले यहां स्नान कुंड में स्नान कर आगे बढ़ते थे। हालांकि वह कुंड अब बंद हो चुका है, लेकिन इसके अवशेष आज भी मौजूद हैं।
यह मंदिर केवल ऐतिहासिक दृष्टि से नहीं, बल्कि चारधाम यात्रा की आध्यात्मिक शुरुआत के रूप में भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
क्या आप जानना चाहेंगे कि चारधाम यात्रा का पारंपरिक क्रम क्या है और सत्यनारायण मंदिर इसमें कैसे जुड़ता है?
मंदिर की स्थापना 1532 में बाबा काली कमली वाले द्वारा की गई थी, लेकिन इसकी पौराणिकता इससे भी पुरानी मानी जाती है।
चारधाम यात्रा की प्रथम चट्टी:
इसे बद्रीनाथ धाम की प्रथम चट्टी (विश्राम स्थल) माना गया है। पुराणों, विशेष रूप से स्कंद पुराण, में इसका उल्लेख है।
स्थानीय आस्था का केंद्र:
श्रद्धालु मानते हैं कि भगवान सत्यनारायण से अनुमति लेकर ही यात्रा प्रारंभ करनी चाहिए। इसीलिए यात्रा का पहला चरण यहां से शुरू होता है।
स्थान:
यह मंदिर सौंग नदी के तट पर, हरिद्वार-ऋषिकेश राजमार्ग पर स्थित है और हरिद्वार से मात्र 15 किलोमीटर की दूरी पर है।
मंदिर की मूर्तियाँ:
यहां लक्ष्मी-नारायण के विग्रह के साथ-साथ भगवान गरुड़ की प्रतिमा भी विराजमान है।
धार्मिक आयोजन और भंडारे:
मंदिर में नियमित रूप से सत्यनारायण व्रत कथा, भंडारे, और धार्मिक आयोजन होते रहते हैं, जिससे यह एक जीवंत धार्मिक स्थल बना हुआ है।
स्नान कुंड के अवशेष:
प्राचीन समय में श्रद्धालु यात्रा से पहले यहां स्नान कुंड में स्नान कर आगे बढ़ते थे। हालांकि वह कुंड अब बंद हो चुका है, लेकिन इसके अवशेष आज भी मौजूद हैं।
यह मंदिर केवल ऐतिहासिक दृष्टि से नहीं, बल्कि चारधाम यात्रा की आध्यात्मिक शुरुआत के रूप में भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
क्या आप जानना चाहेंगे कि चारधाम यात्रा का पारंपरिक क्रम क्या है और सत्यनारायण मंदिर इसमें कैसे जुड़ता है?
