
kalka mandir chandra grahan 2025
Chandra Grahan 2025: 7 सितंबर 2025 को लगे चंद्र ग्रहण के दौरान जब देशभर के मंदिरों के कपाट सूतक काल की वजह से बंद रहे, तब दिल्ली का प्रसिद्ध कालकाजी मंदिर भक्तों के लिए खुला रहा। इस अनोखी परंपरा के पीछे की धार्मिक मान्यताओं और मंदिर के महंत द्वारा बताए गए कारणों की विस्तृत जानकारी प्रस्तुत है।
चंद्र ग्रहण 2025: एक विशेष खगोलीय घटना
7-8 सितंबर 2025 की रात को साल का दूसरा और अंतिम पूर्ण चंद्र ग्रहण हुआ, जो भारत में स्पष्ट रूप से दिखाई दिया। यह ग्रहण रात 8:58 बजे शुरू होकर सुबह 2:25 बजे तक चला, जिसमें से पूर्ण ग्रहण की अवधि रात 11:00 बजे से 12:22 बजे तक 82 मिनट तक रही।
चंद्र ग्रहण के मुख्य चरण:
छाया प्रवेश: रात 8:58 बजे
पूर्ण ग्रहण: रात 11:00 से 12:22 बजे तक
मध्य काल: रात 11:41 बजे
ग्रहण समाप्ति: रात 2:25 बजे
सूतक काल: दोपहर 12:57 बजे से शुरू
कालकाजी मंदिर की अनोखी परंपरा
महंत का स्पष्टीकरण
कालकाजी मंदिर के पीठाधीश्वर महंत सुरेंद्र नाथ अवधूत ने इस परंपरा के पीछे के धार्मिक कारणों को स्पष्ट किया। उनके अनुसार, जबकि सामान्यतः सभी मंदिरों के कपाट सूतक काल से लेकर ग्रहण के मोक्ष काल तक बंद रहते हैं, सिद्धपीठ कालकाजी मंदिर के कपाट भक्तों के लिए रात 12 बजे तक खुले रहे।
धार्मिक आधार और मान्यताएं
महंत सुरेंद्र नाथ अवधूत के अनुसार इस परंपरा के पीछे निम्नलिखित धार्मिक कारण हैं:
मुख्य कारण:
12 राशियां और 9 ग्रह स्वयं मां के भवन में विराजमान हैं
ये सभी मां के पुत्रों के रूप में यहां निवास करते हैं
मां कालका स्वयं काल की स्वामिनी हैं
मंदिर तंत्र, मंत्र और यंत्र से निर्मित है
विशेष ज्योतिषियों द्वारा इसका निर्माण किया गया था
मंदिर की संरचनात्मक विशेषताएं
कालकाजी मंदिर में 12 द्वार हैं जो 12 राशियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह मंदिर 5000 साल पुराना माना जाता है और कहा जाता है कि भगवान कृष्ण ने स्वयं पांडवों को यहां पूजा कराई थी और माता ने उन्हें विजय श्री का आशीर्वाद दिया था।
देश के अन्य अपवाद मंदिर
चार प्रमुख मंदिर जो ग्रहण में खुले रहते हैं
कालकाजी मंदिर के अतिरिक्त देश के निम्नलिखित मंदिर भी ग्रहण काल में खुले रहते हैं:
1. महाकालेश्वर मंदिर, उज्जैन
1. भगवान शिव का प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग
महाकाल को काल का स्वामी माना जाता है
सूर्य और चंद्रमा स्वयं महाकाल के अंश हैं
केवल पूजा के समय में परिवर्तन होता है
2. विष्णुपद मंदिर, गया
पिंडदान के लिए प्रसिद्ध तीर्थस्थल
ग्रहण काल में पिंडदान करना शुभ माना जाता है
पितरों के कल्याण के लिए विशेष महत्व
सूतक काल में भी निरंतर खुला रहता है
3. लक्ष्मीनाथ मंदिर, बीकानेर
पौराणिक कथा: एक बार ग्रहण के दौरान जब मंदिर बंद था और भगवान को भोग नहीं लगाया गया, तो भगवान ने बालक रूप में हलवाई के सपने में आकर भूख की बात कही। तब से यह मंदिर कभी बंद नहीं होता
4. तिरुवरप्पु श्री कृष्ण मंदिर, केरल
भगवान कृष्ण की निरंतर भूख की मान्यता
एक बार ग्रहण में बंद करने पर कमर-पट्टी ढीली हो गई थी
भगवान के भूखे रहने का डर
काशी विश्वनाथ मंदिर की विशेष व्यवस्था
काशी विश्वनाथ मंदिर में केवल ग्रहण के 2.5 घंटे पहले ही कपाट बंद होते हैं, पूरे सूतक काल के लिए नहीं। भगवान विश्वनाथ को तीनों लोकों का स्वामी माना जाता है, इसलिए उन पर सूतक का प्रभाव नहीं होता।
सामान्य मंदिरों में सूतक नियम
क्यों बंद होते हैं मंदिर?
हिंदू परंपरा में ग्रहण को अशुभ समय माना जाता है। इस दौरान:
वातावरण दूषित हो जाता है
मूर्तियों पर पर्दा डाल दिया जाता है
दीपक बुझा दिए जाते हैं
पूजा-पाठ स्थगित कर दी जाती है
ग्रहण के बाद शुद्धिकरण करके मंदिर खोले जाते हैं
सूतक काल के नियम
चंद्र ग्रहण का सूतक 9 घंटे पहले शुरू होता है
इस अवधि में शुभ कार्य वर्जित होते हैं
भोजन नहीं करना चाहिए
मंत्र जाप और ध्यान लाभकारी माने जाते हैं
भक्तों के लिए विशेष अवसर
कालकाजी मंदिर में बढ़ी भीड़
चंद्र ग्रहण के दौरान कालकाजी मंदिर में सामान्य दिनों की अपेक्षा अधिक संख्या में श्रद्धालु पहुंचे। भक्तों ने रात 12 बजे तक निर्बाध रूप से माता के दर्शन किए। यह मंदिर की अनूठी परंपरा का प्रमाण है कि यहां ग्रहण का कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं माना जाता।
आध्यात्मिक महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माता काली की शक्ति इतनी प्रचंड है कि ग्रहण जैसी अशुभ घटना उनके दरबार में टिक ही नहीं सकती। ग्रहण और नक्षत्र खुद माता के पुत्र समान हैं, इसलिए यहां पूजा-पाठ रोकने का कोई औचित्य नहीं है।
निष्कर्ष
दिल्ली का कालकाजी मंदिर एक अद्वितीय धार्मिक परंपरा का प्रतीक है जहां ग्रहण काल में भी भक्ति और आराधना निरंतर चलती रहती है। महंत सुरेंद्र नाथ अवधूत के स्पष्टीकरण के अनुसार, यह परंपरा माता कालका की सर्वोच्च शक्ति और काल पर उनके नियंत्रण की मान्यता पर आधारित है। यह मंदिर न केवल दिल्ली की अधिष्ठात्री देवी का निवास है, बल्कि एक ऐसा सिद्धपीठ है जहां समय और ग्रह-नक्षत्रों की सामान्य सीमाएं लागू नहीं होतीं।
इस प्रकार, 7 सितंबर 2025 के चंद्र ग्रहण में भी कालकाजी मंदिर का खुला रहना इस बात का प्रमाण है कि भारतीय धर्म और परंपरा में विविधता और गहरे आध्यात्मिक सिद्धांत निहित हैं, जो आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने हजारों साल पहले थे।
डिस्क्लेमर: यह जानकारी मान्यताओं पर आधारित है। YatraJaankaar इसकी पुष्टि नहीं करता है।
