जो जीता वही सिकंदर": महान विजेता की अधूरी भारत यात्रा की कहानी

Alexander the Great
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इतिहास के सबसे प्रसिद्ध कहावत के पीछे छुपा है एक महान राजा की दिलचस्प कहानी


आज से 2381 साल पहले यूनान के एक छोटे कस्बे मेसेडोनिया में जन्मा एक बालक दुनिया के इतिहास में सबसे महान विजेता बनकर उभरा। "जो जीता वही सिकंदर" - यह हिंदी कहावत उसी अलेक्जेंडर द ग्रेट की वीरगाथा पर आधारित है, जिसने महज 32 साल की जिंदगी में पूरी दुनिया को जीतने का सपना देखा था।


सिकंदर का आरंभिक जीवन और शिक्षा

356 ईसा पूर्व में मेसेडोनिया के राजा फिलिप द्वितीय के घर जन्मे सिकंदर को बचपन से ही महान बनने की शिक्षा दी गई। 13 साल की उम्र में उन्होंने अरस्तु जैसे महान दार्शनिक से शिक्षा ली। मात्र 12 साल की उम्र में उसने ब्यूसीफेलस नामक एक विशाल जंगली घोड़े को काबू में किया, जो आजीवन उसका साथी बना रहा।


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20 साल की उम्र में पिता की हत्या के बाद सिकंदर मेसेडोनिया का राजा बना। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि इस हत्या में सिकंदर और उसकी मां ओलंपियास का हाथ हो सकता था।


फारस साम्राज्य की विजय

राज्याभिषेक के बाद सिकंदर ने सबसे पहले यूनान के अन्य शहरों में अपना नियंत्रण स्थापित किया। इसके बाद वह फारस साम्राज्य की ओर बढ़ा। उस समय फारस के राजा डेरियस तृतीय की सेना में 25 लाख सैनिक थे, जबकि सिकंदर के पास केवल 500 सैनिक थे।

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अपनी बुद्धिमत्ता और रणनीति से सिकंदर ने एक के बाद एक फारस के शहरों पर कब्जा कर लिया। 331 ईसा पूर्व में आरबेला के युद्ध में डेरियस तृतीय को हराकर उसने पूरे हखामनी साम्राज्य पर अधिकार कर लिया।


भारत अभियान की शुरुआत

326 ईसा पूर्व में सिकंदर ने भारत की ओर रुख किया। उस समय भारत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में 28 छोटे-बड़े राज्य थे, जो आपसी शत्रुता के कारण एकजुट नहीं हो पा रहे थे। सिकंदर ने इस स्थिति का फायदा उठाते हुए हिंदुकुश पर्वत पार करके काबुल के रास्ते भारत में प्रवेश किया।


तक्षशिला के राजा आम्भी ने सिकंदर का स्वागत किया और उसे 5000 भारतीय सैनिक तथा 65 हाथी भेंट किए। यह भारतीय राजा द्वारा अपने देश के प्रति विश्वासघात का पहला उदाहरण माना जाता है।

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राजा पोरस के साथ महाकुंभला युद्ध

जब सिकंदर झेलम नदी के तट पर पहुंचा, तो उसका सामना राजा पोरस से हुआ। पोरस झेलम से चिनाब नदी तक के पुरुवास राज्य के शासक थे। सिकंदर ने पोरस को समर्पण का संदेश भेजा, लेकिन वीर राजा पोरस ने इंकार कर दिया।


मानसून की बारिश के कारण झेलम नदी उफान पर थी। पोरस को विश्वास था कि कोई सेना इस स्थिति में नदी पार नहीं कर सकती। लेकिन सिकंदर ने रात के अंधेरे और आंधी-तूफान का फायदा उठाकर अपनी सेना को नदी पार करा दिया।


युद्ध की रणनीति

पोरस की सेना में विशाल हाथी, तीरंदाज और घुड़सवार शामिल थे। इतिहासकारों के अनुसार, सिकंदर की सेना में 50,000 सैनिक थे जबकि पोरस के पास लगभग 20,000 सैनिक थे।


हाइडास्पीज की इस लड़ाई में सिकंदर को पहली बार हाथियों की शक्ति का सामना करना पड़ा। यूनानी घोड़े हाथियों को देखकर डर गए। सिकंदर के सैनिकों ने हाथियों को घेरकर उनकी आंखों पर निशाना लगाने की रणनीति अपनाई।


युद्ध के दौरान सिकंदर का प्रिय घोड़ा ब्यूसीफेलस एक तीर लगने से मारा गया। यह घटना सिकंदर को बेहद दुखी कर गई, लेकिन उसने युद्ध जारी रखा।

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पोरस की वीरता और सिकंदर की उदारता

8 घंटे तक चले इस भीषण युद्ध में अंततः पोरस को बंदी बना लिया गया। जब सिकंदर ने पोरस से पूछा कि उसके साथ कैसा व्यवहार किया जाए, तो वीर राजा ने उत्तर दिया - "एक राजा दूसरे राजा के साथ जैसा करता है"।


पोरस के इस साहसिक उत्तर से प्रभावित होकर सिकंदर ने न केवल उसे माफ कर दिया, बल्कि उसका पूरा साम्राज्य वापस कर दिया और आसपास की अतिरिक्त भूमि भी भेंट में दी।

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भारत छोड़ने का कारण

पोरस से युद्ध जीतने के बाद सिकंदर की सेना पूरी तरह थक चुकी थी। उन्हें पता चला कि गंगा के उस पार मगध और नंद वंश जैसे और भी शक्तिशाली साम्राज्य हैं, जिनके पास हजारों हाथी और लाखों सैनिक हैं।


सिकंदर के सैनिकों ने आगे बढ़ने से मना कर दिया और विद्रोह की धमकी दी। तीन दिन तक अपने तंबू में बैठकर सोचने के बाद सिकंदर को यह स्वीकार करना पड़ा कि गंगा तक जाने का उसका सपना अधूरा रह जाएगा।

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सिकंदर की मृत्यु और संदेश

भारत से वापसी के दौरान 323 ईसा पूर्व में मात्र 32 वर्ष की आयु में बेबीलोन (आधुनिक इराक) में एक रहस्यमय बीमारी से सिकंदर की मृत्यु हो गई। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि यह मलेरिया या संक्रमण के कारण हुआ था।


मरते समय सिकंदर की अंतिम इच्छा थी कि उसे दफनाते वक्त उसके दोनों हाथ ताबूत से बाहर निकले हों, "ताकि दुनिया देख सके कि जिसने पूरी जमीन जीत ली वो भी खाली हाथ ही जाता है"।


निष्कर्ष

सिकंदर की कहानी यह दिखाती है कि वीरता और रणनीति से कोई भी व्यक्ति महान बन सकता है, लेकिन अंततः सभी को खाली हाथ जाना पड़ता है। राजा पोरस जैसे वीर योद्धाओं के कारण ही भारतीय सभ्यता की गरिमा बनी रही। यदि सिकंदर पूरी तैयारी के साथ भारत पर आक्रमण करता, तो शायद भारत का इतिहास कुछ और होता। लेकिन पोरस जैसे वीर राजाओं की वजह से ही "जो जीता वही सिकंदर" की कहावत में भारतीय गौरव का भी समावेश है।

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